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शनिवार, 15 जुलाई 2017

चाहत

वह कहता रहा 
मै सुनती रही 
ख्वाब मैं अक्सर 
उसी की बुनती रही
हर रोज उसे देखने को 
दिल भोड़ से ही तड़प  उठता 
जब उससे नजरे मिलती 
मन शांत होता और 
दिल की प्यास बुझती 
मैं कितनी नासमझ थी 
ख्वाब बुनती रही 
वक्त बीतता गया 
एक दिन अपने ही हाथो 
उसे अपने आप से जुदा  किया
खुद से ही उसे गैर बता डाला 
उसके दिल को 
झकझोड़ कर तोड़डाला 
क्यूंकि मेरी मुस्किल 
कुछ अलग थी 
मै अपने फर्ज से बंधी थी 
और क्या करती 
अपना प्यार 
दिल में ही छुपा लिया
बड़ी मुस्किल से उसको 
मैंने गैर तो बता दिया 
अपने एहसास को
 दिल में ही सूला  दिया
रंग जो प्यार का चढ़ा था 
उसको फर्ज से नहला दिया 
साबुन से साफ करके 
सब कुछ मिटा दिया 
पर दिल के  एहसास को
 मै मिटा न पाई 
आज भी उस दिन को याद  कर 
मन उदास होता है
कास तुम मेरे संग होते 
अपना भी प्यार संग-संग होता 
जीवन में कुछ उमंग होता
 कुछतो  तरंग होता      

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