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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

थे अश्रु भरे दो नयना

थे अश्रु भरे दो नयना
दिन राते रही बेचैनी
कुछ ख़ास करूँ भूतल पर
थी उथल-पुथल जीवन में
लिखना कुछ खास था मुझको!

थे अश्रु भरे दो नयना
मन के उलझन में फंसकर
करबद्ध खड़े थे रण में
चारों ओर उदासी छाई
मन में बेचैनी इतनी
कर जाऊं कुछ तो मैं भी!

थे अश्रु भरे दो नयना
हैं कैसी ये उलझन जो
प्रभु आप मिटा नहीं सकते
क्यों अंधकार छाया हैं
मैं लाख करूँ कोशिश पर!

थे अश्रु भरे दो नयना
मैं हार हमेशा खाती
हैं कमी कहाँ कोशिश में
मुझे इतनी राह दिखाओ!

मैं कोशिश करने में फिर
पीछे नहीं हटूंगी
मैं सेवा और करूँ क्या
जब खुद उलझी रहती हूं!

इन अश्रु भरे नयनों को
खुशियों की राह दिखा दो
इस उलझे जीवन को
सेवा का पथ दिखला दो
जो कमी हमारे अंदर
हे प्रभु हमें बतला दो
हमें सच्ची राह दिखा दो
ख़ुशियों का पता बता दो!!

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