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रविवार, 16 अप्रैल 2017

व्यवस्था

बात उन दिनों कि हैं जब मैं कॉलेज में पढ़ता था. हमारे कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर के रिटायर होने के मौके पर इनके सम्मान में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था और उसके बाद सभी के लिए भोजन की व्यवस्था थी. इन सारी व्यवस्था की जिम्मेवारी मुझे सौंपी गई थी. हम सबने कार्यक्रम के लिए खूब तैयारी की, कई प्रोग्राम पेश किए गए. पूरा हॉल विद्यार्थियों और अध्यापकों से खचा-खच भरा हुआ था. हॉल लगातार तालियों की गूंज से गुंजायमन हो रही थी. तभी एक ऐसी घटना घटी जिसने हमारी व्यवस्था की पोल मिनटों में खोल दी और चारो ओर शोर-ही-शोर. जहां मुझे मेरी व्यवस्था के लिए वाह-वाही मिल रही थी, वहां अब कुछ चल रहा था तो आरोप-प्रत्यारोप. मंच का हिस्सा टूट गया था और उसमें प्रोफेसर साहब को भी थोरी बहुत चोट आ गई थी. इसी बीच किसी ने पुलिस और मीडिया वालो को फ़ोन कर दिया, फिर क्या था बाकी बची कसर पूरी हो गई. मैं जब तक कुछ समझ पाता पुलिस ने मेरे हाथ में हथकड़ियां पहना दी थी और मीडिया वाले ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे, “ब्रेकिंग न्यूज़ आज कॉलेज के अंदर जो हुआ वो कोई छोटी बात नहीं हैं, कही इसमें किसी की साजिश तो नहीं हैं. यह लड़का जो सारी व्यवस्था देख रहा था, किसी अराजक तत्व से तो नहीं मिला हुआ हैं. पुलिस विभिन्न पहलु से इस केस की जांच कर रही हैं. हम जल्द ही इस खबर पर आपको अपडेट देंगे”. आज हमारे देश में मीडिया वाले इतने हाईटेक हो गए हैं कि सारी व्यवस्था उन्ही के इर्द-गिर्द घुमती नज़र आती हैं. वो अपनी मनगढ़ंत कहानी को इतनी पुरजोर तरीके से रखते हैं कि हर सुनने वाले को लगता हैं कि सच यही हैं और फिर पुलिस वालों को उस पर मुहर लगाने के लिए चंद ऐसी कड़ियाँ जोड़नी होती हैं जो पुलिस के गिरफ्त में आए व्यक्ति को गुनहगार साबित कर दे और यह काम पुलिस वालों के लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं.
ख़ैर मेरे गिरफ्तार होने की सूचना मेरे परिवार वालों को दे दी गई. घर में कोहराम मच गया आनन-फानन में माँ और पापा पुलिस स्टेशन की ओर भागे. जब पुलिस वालों ने पापा को बताया कि, “आपके बेटे ने जो किया हैं वो घोर अपराध हैं. अपने गुरु को जान से मारने की कोशिश की हैं, इसे आसानी से बेल नहीं मिलेगी”. पापा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. वो पुलिस वाले से जिद्द करने लगे कि, “मुझे मेरे बेटे से एक बार मिलने दीजिए. मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता हैं” लेकिन पुलिस वाले टस से मस नहीं हुए. पुलिस वालों ने कहा, “सर, बड़ा हाई प्रोफाइल केस हैं इसमें हम कुछ नहीं कर पाएंगे. जब तक कॉलेज प्रबंधन से हमारी बात नहीं हो जाती हैं. हम आपके लिए कुछ नहीं कर पाएंगे”. साथ ही पुलिस वालों ने पापा को एक सलाह भी दे दी कि कोई अच्छा वकील कर लीजिए नहीं तो बेटे को बचाना बड़ा मुश्किल होगा. मेरे माता-पिता को कुछ सूझ नहीं रहा था. उनके जिस बेटे ने कल तक एक चीटी नहीं मारी वह आज अचानक अपने गुरु को मारने की कोशिश कैसे कर सकता हैं.
      वह भागते-भागते कॉलेज प्रबंधन से मिलने के लिए पहुंचे, तब तक काफी रात हो चुकी थी. उन्हें कॉलेज के गेट से ही बैरंग वापस आना पड़ा. माँ का रो-रोकर बुरा हाल था. मैं बेबस, पुलिस बेख़बर, कॉलेज प्रबंधन भी बेबस लेकिन इन सबके बीच जो कोई पीस रहा हैं वो तो माता-पिता जिन्होंने हमें जन्म दिया हैं. गलती चाहे किसी की भी हो लेकिन व्यवस्था और हमारी गलतियों का खामियाज़ा किसी को भुगतना पड़ता है तो वह हमारी धरती माँ, हमारी मात्रभूमि को. अतः मैं अपने सभी युवा बंधुओं का ध्यान उनकी अपनी ज़िम्मेदारी जो चाहे छोटी से छोटी क्यों न हो सावधानी पूर्वक और ईमानदारी से निभानी चाहिए ताकि माहोल में भ्रम फैलने से पहले ही रुक जाए क्योंकि हम सब कही न कही एक दुसरे से जुड़े हुए हैं और एक की गलती की सज़ा दूर तक कई लोगो को होता हैं. हमारी व्यवस्था की दुर्दशा किसी एक की वजह से नहीं बल्कि हम सबकी वजह से हुई हैं. अतः हमें यह संकल्प करना होगा कि अगर हमें या हमारे समाज को आगे बढ़ाना हैं तो हम सबको मिलकर एक इमानदार कोशिश करनी होगी.

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